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ग़ज़ल
ये कैसी ज़िंदगी है ऐ असीर-ए-दाम-ए-ख़ुश-फ़हमी
जफ़ा-ए-बाग़बाँ भी अब वफ़ा मा'लूम होती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
कौन सी रुत है ज़माने में हमें क्या मालूम
अपने दामन में लिए फिरती है हसरत हम को
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
फ़िल्मी दुनिया के बारे में सब कुछ मालूम है लेकिन
कौन थे अपने नाना दादा ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
फिरी है क्यों निगह-ए-दिलरुबा नहीं मालूम
है इस अदा में भी किस की क़ज़ा नहीं मालूम
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
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ग़ज़ल
ख़ुश-फ़हमी में जीने वाले हम को सुन कर चौंक पड़े
उन को ये मा'लूम नहीं था हम भी बातें करते हैं
कामरान आदिल
ग़ज़ल
शफ़क़ फूली हुई है हर तरफ़ ख़ून-ए-शहीदाँ की
ज़मीन-ए-कू-ए-क़ातिल आसमाँ मालूम होती है
अख़तर मधुपुरी
ग़ज़ल
नज़र फिरती थी वो पहले भी लेकिन यूँ न फिरती थी
कुछ अब की ख़त्म होती दास्ताँ मा'लूम होती है