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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है
दाग़ देहलवी
नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
मौज-ए-दूद-ए-आह से आईना है रौशन मिरा
गंज-ए-आब-आवर्द से मामूर है दामन मिरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वक़्त के हाथों यहाँ क्या क्या ख़ज़ाने लुट गए
एक तेरा ग़म कि गंज-ए-शाईगाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
सर-ब-कफ़ गंज-ए-शहीदाँ में चले जाते हैं
इम्तिहाँ से नहीं डरते तिरे फ़रज़ाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
नज़्म
भूका बंगाल
भूका है बंगाल रे साथी भूका है बंगाल
कोठरियों में गाँजे बैठे बनिए सारा अनाज
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
चार मुसाफ़िर
इक फ़लसफ़ी था उन में दूसरा था नाई
फिर तीसरा सिपाही गंजा था जिस का भाई
आफ़ाक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
आह ओ फ़ुग़ाँ न कर जो खुले 'ज़ौक़' दिल का हाल
हर नाला इक कलीद-ए-दर-ए-गंज-ए-राज़ है