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ग़ज़ल
मैं फ़ैज़याब-ए-गर्दिश-ए-साग़र नहीं हुआ
क्यूँ ऐ निगाह-ए-दोस्त ये क्यूँ-कर नहीं हुआ
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
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शेर
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
जवाब-ए-गर्दिश-ए-साग़र कहाँ से लाएगी 'शाहिद'
समझ कर गर्दिश-ए-दौराँ किसी मय-ख़्वार तक पहुँचे
नरेन्द्र शाहिद
ग़ज़ल
आँख साक़ी की जो पलटे तो पलट जाए जहाँ
गर्दिश-ए-साग़र-ए-मय गर्दिश-ए-दौराँ हो जाए