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नज़्म
ऐ नए साल बता तुझ में नया-पन क्या है
जनवरी फ़रवरी मार्च में पड़ेगी सर्दी
और अप्रैल मई जून में हो गी गर्मी
फ़ैज़ लुधियानवी
नज़्म
बरसात की बहारें
गाती है गीत कोई झूले पे कर के फेरा
मारो जी आज कीजिए याँ रैन का बसेरा
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
अपने अंदर ज़र्द पत्तों की तरह बिखरूँ गी में
मेरे अंदर से मुझे पतझड़ उड़ा ले जाएगा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
हास्य
फीका लंच और डिनर भी उम्दा और तीखा लगता है
नक़ली तेल में तल्ला समोसा असली घी का लगता है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
दूसरे दर्जे की पिछली क़तार का आदमी
गोश्त मछली सब्ज़ियाँ बनिए का राशन दूध घी
मुझ को खाती हैं ये चीज़ें मैं ने कब खाया इन्हें
शकील आज़मी
नज़्म
जवाँ-मर्ग का नौहा
कि आँख जब ख़्वाब के सहीफ़े को चाट ले गी
तो नूह कैप्सूल से पुकारेगा