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ग़ज़ल
घर से किस तरह से यूँ हज़रत-ए-मुनइ'म निकलें
दी न बूबू ने इजाज़त न दिवाने चाहा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इन दिनों हज़रत-ए-यूसुफ़ की वो ना-क़दरी है
नहीं बुढ़िया भी ख़रीदार बुरी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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नज़्म
झोंपड़ा
इस में ही अहल-ए-दौलत-ओ-मुनइम अमीर हैं
इस में ही रहते सारे जहाँ के फ़क़ीर हैं
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क़स्र-ओ-महल-ए-मुनइम तुझ को ही मुबारक हों
बैठे हैं हम आसूदा गोशे में क़नाअत के
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
हयात-ए-ख़ेमा-ए-मुनइ'म है जिस के दम ख़म से
उसी चराग़ का बे-साख़्ता गुदाज़ हूँ मैं
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
जहाँ की सर-बुलंदी का मआल-ए-कार पस्ती है
नशात-ओ-ऐश-ए-मुनइम पर है मुफ़लिस ख़ंदा-ज़न क्या क्या