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ग़ज़ल
दिल दिया है जिस को वाइ'ज़ है हमें उस की तलाश
हूर-ए-जन्नत से शनासाई नहीं उल्फ़त नहीं
मोहम्मद विलायतुल्लाह
नज़्म
औरत
हूर-ए-जन्नत है किसी के लिए लेकिन कोई
चाह-ए-बाबिल की समझता है हक़ीक़त तुझ को
अज़ीमुद्दीन अहमद
ग़ज़ल
हूर-ए-जन्नत की तमन्ना दिल में रखते हैं मगर
शैख़ जी का क़ौल है उल्फ़त का मैं क़ाइल नहीं
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
आँख उठा कर न कभी देखता मैं उस को मगर
हूर-ए-जन्नत पे मुझे होता है धोका उन का
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
ख़ुदा के वास्ते महशर में बे-पर्दा न हो जाना
तुम्हीं पर हूर-ए-जन्नत का कहीं धोका न हो जाए
फ़ज़ल हुसैन साबिर
नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
शेर
पौ फटते ही 'रियाज़' जहाँ ख़ुल्द बन गया
ग़िल्मान-ए-महर साथ लिए आई हूर-ए-सुब्ह