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नज़्म
झोंपड़ा
इस में ही बाजे और नक़ारे-ओ-ढोल हैं
शा-झोंपड़ा भी इस में ही करते कलोल हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
परछाइयाँ
उठो कि आज हर इक जंग-जू से ये कह दें
कि हम को काम की ख़ातिर कलों की हाजत है
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
तिरी राह कितनी तवील है मिरी ज़ीस्त कितनी क़लील है
मिरा वक़्त तेरा असीर है मुझे लम्हा लम्हा सँवार दे
इन्दिरा वर्मा
रेख़्ती
चूम कर ज़ुल्फ़-ए-दोता फँसता नहीं जालों के बीच
साफ़ बच जाता है गोरा सैकड़ों कालों के बीच
मोहसिन ख़ान मोहसिन
नज़्म
मिरी याद तुम को भी आती तो होगी
मिरी याद तुम को भी आती तो होगी
गुज़िश्ता मोहब्बत सताती तो होगी
क़लील झांसवी
नज़्म
होली
हँसी ख़ुशी का है क़ाल-ओ-मक़ाल होली में
इसी बहार से गोकुल पूरे में जा पोहँचे
नज़ीर अकबराबादी
हास्य शायरी
मालिक ने भी ये सोच के दे दी थी इस को ढील
अब इस की ज़िंदगी के हैं लम्हे बहुत क़लील
दिलावर फ़िगार
नज़्म
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ
हाए कश्कोल-ए-गदाई ले के अब जाएगा कौन
लाल गंदुम ला के हम कालों को खिलवाएगा कौन