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ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
ख़रोश-आमोज़ बुलबुल हो गिरह ग़ुंचे की वा कर दे
कि तू इस गुल्सिताँ के वास्ते बाद-ए-बहारी है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
एक लड़का
जुज़ इक ज़ेहन-ए-रसा कुछ भी नहीं फिर भी मगर मुझ को
ख़रोश-ए-उम्र के इत्माम तक इक बार उठाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
शिकस्त
रह गया दब के गिराँ-बार सलासिल के तले
मेरी दरमांदा जवानी की उमंगों का ख़रोश
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक़बाल
इस गीत के तमाम महासिन हैं ला-ज़वाल
इस का वफ़ूर इस का ख़रोश इस का सोज़-ओ-साज़