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शेर
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस की छेड़-छाड़ में है
कहाँ मिलाप में वो बात जो बिगाड़ में है
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
पहुँचूँ मैं किस की कोहना हक़ीक़त को आज तक
'इंशा' मुझे मिला नहीं अपना ही कुछ सुराग़
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
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ग़ज़ल
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
क्या हँसी आती है मुझ को हज़रत-ए-इंसान पर
फ़े'ल-ए-बद ख़ुद ही करें ला'नत करें शैतान पर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
कुछ इशारा जो किया हम ने मुलाक़ात के वक़्त
टाल कर कहने लगे दिन है अभी रात के वक़्त
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं
मिल गई सब ख़ाक में जिस वक़्त ज़ंजीरें खिंचीं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम
देता हूँ तुझ को तख़्त-ए-सुलैमान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
कर लेता हूँ बंद आँखें मैं दीवार से लग कर
बैठे है किसी से जो कोई प्यार से लग कर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
साँवले तन पे ग़ज़ब धज है बसंती शाल की
जी में है कह बैठिए अब जय कनहय्या लाल की