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ग़ज़ल
तुम महव-ए-ख़ुद-आराई में आलम-ए-तन्हाई
तुम महफ़िल-ए-ख़ल्वत हो मैं ख़ल्वत-ए-महफ़िल हूँ
शमीम करहानी
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल-आशोब
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
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ग़ज़ल
कुछ इशारात-ए-निहाँ हों तो निगाह-ए-नाज़ के
भाँप लेंगे हम ये महफ़िल रश्क-ए-ख़ल्वत भी तो हो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मुझे है सदमा-ए-हिज्राँ अदू को सैकड़ों ख़ुशियाँ
मिरे उजड़े हुए घर को भरी महफ़िल से क्या निस्बत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मज़ा क्या उस बुत-ए-बे-पीर से दिल के लगाने का
जो ख़ल्वत में हो बुत महफ़िल में हो तस्वीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुद्दत में तुम मिले हो क्यूँ ज़िक्र-ए-ग़ैर आए
मैं अपने साए से भी ख़ल्वत में बद-गुमाँ हूँ