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ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
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ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार में खो गए हम तो ऐ 'नदीम'
अपना भी इंतिज़ार है उन का ही इंतिज़ार क्या
अनवर शादानी
ग़ज़ल
अहल-ए-वफ़ा के नाम तो ज़िंदा हैं आज भी
गो उन के जिस्म कब के मज़ारों में खो गए