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नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
जाड़े की बहारें
जब माह अघन का ढलता हो तब देख बहारें जाड़े की
और हँस हँस पूस सँभलता हो तब देख बहारें जाड़े की
नज़ीर अकबराबादी
हास्य शायरी
बढ़ रहे हैं हर तरफ़ अज़्म ओ अमल के कारवाँ
मुर्ग़ अंडे दे रहे हैं और अज़ानें मुर्ग़ियाँ
साग़र ख़य्यामी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
मर्सिया
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
दश्त-ए-विग़ा में नूर-ए-ख़ुदा का ज़ुहूर है
मीर अनीस
नज़्म
हिण्डोला
दयार-ए-हिन्द था गहवारा याद है हमदम
बहुत ज़माना हुआ किस के किस के बचपन का