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हास्य शायरी
उन को सिर्फ़ इस काम में उलझाए रखना है ग़लत
हम ने माना बच्चे जनना कार-ए-मस्तूरात है
चूँचाल सियालकोटी
हास्य शायरी
धाक यूँ अपनी बिठा देती है मस्तूरात में
हर किसी को हूर दिखती है बस अपनी ज़ात में
बद्र मुनीर
नज़्म
कोई ये कैसे बताए
तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ए'तिराफ़
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार
असरार-उल-हक़ मजाज़
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ग़ज़ल
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
दो दिन की मसर्रत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
नज़्म
परछाइयाँ
तुम्हारी आँख मसर्रत से झुकती जाती है
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किसी को उदास देख कर
मैं अपनी रूह की हर इक ख़ुशी मिटा लूँगा
मगर तुम्हारी मसर्रत मिटा नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आख़िरी ख़त
माज़ी पे नदामत हो तुम्हें या कि मसर्रत
ख़ामोश पड़ा सोएगा वामांदा-ए-उल्फ़त