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ग़ज़ल
बन के मिटूँ तो हाँ मिटूँ हुस्न-ए-शह-ए-हिजाज़ पर
मिट के अगर बनूँ तो हूँ ख़ाक-ए-रह-ए-हिजाज़ मैं
शहज़ादी कुलसूम
ग़ज़ल
तेरी ख़ुशी के वास्ते मैं सौ सौ बार मर-मिटूँ
तो इस जुनून-ए-इश्क़ को सनम ज़रा सा रहने दे
गुरबीर छाबरा
ग़ज़ल
अना को रौंद कर ख़ुद्दारी को पामाल कर डालूँ
किसी भी हुस्न पर मैं मर-मिटूँ अब ये नहीं होगा
अशरफ़ रज़ा क़ादरी
ग़ज़ल
ये अजब क़यामतें हैं तिरे रहगुज़र में गुज़राँ
न हुआ कि मर मिटें हम न हुआ कि जी उठें हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
हर घड़ी तेरे ख़यालों में घिरा रहता हूँ
मिलना चाहूँ तो मिलूँ ख़ुद से मैं तन्हा कैसे
