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ग़ज़ल
अज़ाँ देते हैं बुत-ख़ाने में जा कर शान-ए-मोमिन से
हरम के नारा-ए-नाक़ूस हम ईजाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
अब तक असर में डूबी नाक़ूस की फ़ुग़ाँ है
फ़िरदौस-ए-गोश अब तक कैफ़िय्यत-ए-अज़ाँ है
चकबस्त बृज नारायण
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नज़्म
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
न नाक़ूस-ए-बरहमन है न आहंग-ए-हुदा-ख़्वानी
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हिन्दोस्तान
नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ाँ से है
मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्ताँ से है
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
तिरा दम भरते हैं हिन्दू अगर नाक़ूस बजता है
तुझे भी शैख़ ने प्यारे अज़ाँ दे कर पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
मोअज़्ज़िन को भी वो सुनते नहीं नाक़ूस तो क्या है
'अबस शैख़ ओ बरहमन हर तरफ़ फ़रियाद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
नज़्म
मनाज़िर-ए-सहर
नाक़ूस के सीने से सदाएँ वो फ़ुग़ाँ की
वो हम्द में डूबी हुई आवाज़ अज़ाँ की
जोश मलीहाबादी
शेर
रात दिन नाक़ूस कहते हैं ब-आवाज़-ए-बुलंद
दैर से बेहतर है काबा गर बुतों में तू नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
फिर तो यारों ने भजन गाने की खुल कर ठान ली