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नज़्म
जिला-वतनी
बस अब बुलबुलों के तरन्नुम में भी
नौहा-ए-ज़िंदगी के सितम-ख़ेज़ तूफ़ान हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
कारोबार-ए-ज़िंदगी तक हैं ये हंगामे 'फ़ज़ा'
क्या वो साया छोड़ देगा जो शजर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
चराग़-ए-ज़िंदगी है या बिसात-ए-आतिश-ए-रफ़्ता
जला कर रौशनी दहलीज़-ए-जाँ पर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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ग़ज़ल
समो न तारों में मुझ को कि हूँ वो सैल-ए-नवा
जो ज़िंदगी के लब-ए-मो'तबर से निकलेगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं