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शेर
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहब्बत ख़ुद ही अपनी पर्दा-दार-ए-राज़ होती है
जो दिल पर चोट लगती है वो बे-आवाज़ होती है
विशनू कुमार शाैक़
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शेर
होता है राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इन्हीं से फ़ाश
आँखें ज़बाँ नहीं हैं मगर बे-ज़बाँ नहीं
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
छुपाऊँ लाख राज़-ए-'इश्क़ इफ़्शा हो ही जाता है
मिरी आँखों से इक तूफ़ाँ पैदा हो ही जाता है
अफ़ज़ल पेशावरी
शेर
दिल कौन है कि उस से कहें राज़-ए-इश्क़ हम
तेरे ख़याल से भी न हम गुफ़्तुगू करें
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल बना दिया
उन की नज़र ने दिल को मिरे दिल बना दिया