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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
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विषय
अतीत
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शेर
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
कभी नीचे भी नज़रें डाल ऊँचे आसमाँ वाले
मुज़्तर ख़ैराबादी
नज़्म
दिल हसीं है तो मोहब्बत भी हसीं पैदा कर
पस्ती-ए-ख़ाक पे कब तक तिरी बे-बाल-ओ-परी
फिर मक़ाम अपना सर-ए-अर्श-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ख़ाक-ए-हिंद
अब तक वही कड़क है बिजली की बादलों में
पस्ती सी आ गई है पर दिल के हौसलों में



