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नज़्म
अन-कही
मेरे बिखरे हुए उलझे हुए बालों में कोई
उँगलियाँ फेरता जाता है बड़े प्यार के साथ
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
गरेबाँ-चाक हूँ गाहे उड़ाता ख़ाक हूँ गाहे
लिए फिरती मुझे वहशत कभी यूँ है कभी वूँ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
गले पर मेरे ख़ंजर फेरता वो और भी लेकिन
हुई मुझ से ख़ता इतनी कि मैं फ़रियाद कर उट्ठा
लाल कांजी मल सबा
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ग़ज़ल
पाकीज़ा एहसास के हाथों प्यास की कैसी मौत हुई
ख़ुश्क लबों पर ज़बाँ फेरता डोले बदन हथियारा सा
बिमल कृष्ण अश्क
नज़्म
एक नज़्म
साँस लेता हूँ बहर-ए-कैफ़ गुमाँ होता है
उँगलियाँ फेरता हूँ अपने बदन पर अब तो
क़य्यूम नज़र
ग़ज़ल
मैं उँगली फेरता हूँ जब कभी भीगे से साहिल पर
बना देता है तस्वीरें तिरी ज़र्रात का आलम
असलम नूर असलम
ग़ज़ल
कहीं मुँह फेरता है जाँ-निसार-ए-इश्क़ मरने से
फ़िदा वो जान कर ले तुझ पे गर सौ बार हो पैदा