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ग़ज़ल
घर अपना वादी-ए-बर्क़-ओ-शरर में रक्खा जाए
तअ'ल्लुक़ात का सौदा न सर में रक्खा जाए
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में
छोड़ूँ न उम्र-ए-रफ़्ता गर आ जाए ख़्वाब में