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ग़ज़ल
अक़्सा फ़ैज़
नज़्म
अपनी साल-गिरह पर
केक के ज़ीने पे चढ़ती है
ज़रा सी फूँक पर हम-राहियों के साथ बुझती है
ताबिश कमाल
नज़्म
तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है
जो सब हम-राहियों से
बे-सबब लड़ता-झगड़ता फिर रहा हूँ
शारिक़ कैफ़ी
समस्त
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ग़ज़ल
जो पूछा राहियोँ ने क्या उठा कर जेब में रख ली
उठाई जो अठन्नी वो दिखा कर जेब में रख ली
जौहर सीवानी
हास्य शायरी
जो पूछा राहियोँ ने क्या उठा कर जेब में रख ली
उठाई जो अठन्नी वो दिखा कर जेब में रख ली
जौहर सीवानी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
पुकारती रहीं बाहें बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख़-ए-सहर की लगन