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ग़ज़ल
नहीं रहती कभी रफ़्तार-ए-ज़माना यकसाँ
दहर में दिन है कभी और कभी रात वसीअ'
मलिका आफ़ाक़ ज़मानी बेगम
ग़ज़ल
रफ़्तार-ए-ज़माना ने बताया ये सबब है
नाव को डुबो देते हैं ग़द्दार नमक के
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
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ग़ज़ल
रफ़्तार-ए-ज़माना का लहजा सफ़्फ़ाक दिखाई देता है
बर-वक़्त कोई तदबीर करो आफ़ात की निय्यत ठीक नहीं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
दूर-अँदेशी जिस में होगी रफ़्तार-ए-ज़माना उस की है
ख़्वाब की आख़िरी मंज़िल आनी है ता'बीरें रौशन रखो
नाज़िर वहीद
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए