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ग़ज़ल
वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से
वो नज़र-गुज़र की शराब थी जो छलक गई मिरे जाम से
सिराज लखनवी
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शेर
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
जूतियाँ मारें हैं इक़बाल के सर पर हम लोग