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ग़ज़ल
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल-आशोब
ये शख़्स यहाँ पामाल रहा, पामाल गया
तिरी चाह में देखा हम ने ब-हाल-ए-ख़राब इसे
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
अगर ज़बाँ से बयाँ हाल-ए-ग़म न हो पाया
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरी ख़ामुशी ने साथ दिया