aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sa.ng-e-raah"
प्रेम सिंह केशव राम ताजिरान-ए-कुतुब, लाहाैर
पर्काशक
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझेआदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद
संग-ए-रह हूँ एक ठोकर के लिएतिस पे वो दामन सँभाल आता है आज
साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गएदिल जल उठा तो ख़ुद ही अँधेरे सिमट गए
ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझेऐसा न हो कि राह सुझाई न दे मुझे
मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक देमैं ऐसा मरहला हूँ जो सौ बार आएगा
Sar-e-Raah
हरभजन सिंह
Tareekh-e-Raj Balrampur
ठाकुर राज इंदर बहादुर सिंह
भारत का इतिहास
Sang-e-Meel
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काव्य संग्रह
Rag-e-Sang
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Waraq-e-Sang
राम रियाज़
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बदर औरंगाबादी
Ashk-e-Sang
एम कोठियावी राही
अली जवाद ज़ैदी
Shumara Number-074,075
फ़िरोज़ बोयजा
Oct, Nov 1976रग-ए-संग
Shumara Number-112,113,114,115
राशिद सुल्तान
Jan, Feb, Mar, Dec 1980रग-ए-संग
Shumara Number-081
रग-ए-संग
मैं संग-ए-रह हूँ तो ठोकर की ज़द पे आऊँगातुम आईना हो तो फिर टूटना ज़रूरी है
न संग-ए-राह न सद्द-ए-क़ुयूद की सूरतमैं ढह रहा हूँ अब अपने वजूद की सूरत
बुत-ख़ाना संग-ए-राह है जिस कू-ए-यार काका'बा भी इक निशाँ है उसी रहगुज़ार का
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहामिरी रात भी तिरे नाम थी उसे किस ने तीरा-शबी कहा
मुझ से गुरेज़-पा है तो हर रास्ता बदलमैं संग-ए-राह हूँ तो सभी रास्तों में हूँ
सर किसी संग-ए-रह की नज़्र हुआआप का संग-ए-दर नहीं देखा
गर्दिश-ए-पा जुनूँ बढ़ाती हैसंग-ए-रह की पुकार हैं हम लोग
संग-ए-रह बन के रोक लूँगा तुझेतेरी आदत समझ गया हूँ मैं
जो संग-ए-मील रहज़न के लिए हैवो संग-ए-राह उठवा लूँ बहुत है
कब से ख़्वाहिश है मैं कभी देखूँसंग-ए-रह संग-ए-मील होते हुए
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