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ग़ज़ल
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
इस बस्ती के इक कूचे में
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इक नार पे जान को हार गया मशहूर है उस का अफ़साना
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जानते हो नहीं चलना तो यूँ चलते क्यूँ हो
आज भी ग़ाफ़िल-ए-मंज़िल हो निकलते क्यूँ हो
शाइस्ता महजबीं
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नज़्म
बेवा की ख़ुद-कुशी
ये अँधेरी रात ये सारी फ़ज़ा सोई हुई
पत्ती पत्ती मंज़र-ए-ख़ामोश में खोई हुई
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
रामायण का एक सीन
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
बरसात की बहारें
हैं इस हवा में क्या क्या बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें