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ग़ज़ल
मैं ने ये जब सुना तो मिरा दिल दहल गया
सूरज का जिस्म आग की लपटों से जल गया
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
तो फिर महशूर उन के साथ अपनी ज़िंदगी होती
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
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ग़ज़ल
मुझ से अब साफ़ भी हो जा यूँही यार आप से आप
जिस तरह है तिरी ख़ातिर में ग़ुबार आप से आप