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ग़ज़ल
इस ग़म को ग़म कहें तो कहें सौ में हम ग़लत
बरसों तुम्हारे ग़म से किया हम ने ग़म ग़लत
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
राज़-ए-दिल जो आदमी दिल में छुपा सकता नहीं
वो किसी को राज़दाँ अपना बना सकता नहीं