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ग़ज़ल
सुर्मा जो ज़ेब-ए-चश्म-ए-सियह-फ़ाम हो गया
फ़ित्ना सवार-ए-अबलक़-ए-अय्याम हो गया
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
मैं गोर में चराग़-ए-सर-ए-शाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
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शेर
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
कुल्लियात
जी में है याद रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम बहुत
रोना आता है मुझे हर सहर-ओ-शाम बहुत
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जब तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम सँवरती होगी
कितनी दुनिया तिरे जलवोें से निखरती होगी