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ग़ज़ल
जो सुने तो दाद मुमकिन है मगर भला सुने क्यूँ
मेरी बेबसी के शिकवे तिरा हुस्न-ए-ला-जवाबी
सुहा मुजद्ददी
ग़ज़ल
कुछ नाम लिए कुछ दर्द कहे रुख़्सत हुए ले कर मेरा सुकूँ
अफ़्साने सुनाए मुझ को नए वो आग नई भड़का भी गए
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
कौन समझेगा भला याँ एक दुखियारे का दुख
किस को फ़ुर्सत है सुने वो मुझ से बंजारे का दुख
मुस्तफ़ा अदीब
नज़्म
बयाबान-ए-बसरा
कि सुनने वाला सुन कर अन-सुनी करता है
जैसे सारा नक़्शा देखा भाला हो उस का
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
ग़ज़ल
क्यूँ मुझ को सुनाए न भला क़िस्सा-ए-जन्नत
वाइ'ज़ ने तिरे मेहर-ओ-वफ़ा को नहीं देखा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
हमें न सुध है न हम दस्तकें ही सुनते हैं
तू अपने दिल से हमें क्या भला निकालेगी