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ग़ज़ल
दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं
ये आदमी की ख़ुदाई का वक़्त है कि नहीं
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
हो गई उक़्दा-कुशाई तिरे दीवाने से
राज़-ए-कौनैन खुले इश्क़ के अफ़्साने से
सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी
शेर
निगह-ए-लुत्फ़ में है उक़्दा-कुशाई मुज़्मर
काम बिगड़े हुए बंदों के सँवर जाते हैं
शेर सिंह नाज़ देहलवी
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ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-उक़्दा-कुशाई पे नदामत कैसी
रस्म-ए-नाख़ुन से ख़फ़ा बंद-ए-क़बा हो भी चुके
ख़्वाज़ा रज़ी हैदर
ग़ज़ल
निगह-ए-लुत्फ़ में है उक़्दा-कुशाई मुज़्मर
काम बिगड़े हुए बंदों के सँवर जाते हैं
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
अगरचे ख़्वाहिश-ए-मंज़िल जुनूँ के नाख़ुन ले
ख़िरद की उक़्दा-कुशाई तो कोई बात नहीं