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ग़ज़ल
कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है
हर साँस दास्ताँ तिरे जौर-ओ-जफ़ा की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
शेवा-ए-ज़ब्त को रुस्वा दिल-ए-नाशाद न कर
लब-ए-ख़ामोश को आलूदा-ए-फ़रियाद न कर
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का
झुक के मुँह चूम लिया शीशे ने पैमाने का
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
वुसअ'त मिरे ख़याल में अर्ज़-ओ-समा की है
महरम नज़र मिरी हरम-ए-किब्रिया की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
जीने का लुत्फ़ ज़ीस्त का हासिल नहीं रहा
वो वलवले नहीं रहे वो दिल नहीं रहा
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ईद
फ़रहत-ए-दिल राहत-ए-जाँ ऐश-ए-पैहम के लिए
ईद आई बन के राहत सारे आलम के लिए