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शेर
बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ुतूर
जिस्म दरवाज़े तक आए तो गली तक पहुँचे
नवीन सी. चतुर्वेदी
शेर
बैठे बैठे फेंक दिया है आतिश-दान में क्या क्या कुछ
मौसम इतना सर्द नहीं था जितनी आग जला ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
शेर
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
क्या हो जाता है इन हँसते जीते जागते लोगों को
बैठे बैठे क्यूँ ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
शेर
नहीं मा'लूम ऐ यारो 'सबा' के दिल में क्या आया
अभी जो बैठे बैठे वो यकायक आह कर उट्ठा
लाल कांजी मल सबा
शेर
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो
बेख़ुद देहलवी
शेर
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं