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शेर
वहशत-ए-दुनिया-गज़ीदा अब हैं ज़ात-ओ-काएनात
शरह-ए-नाला गिर्या-ए-एहसास-ओ-जाँ कैसे करूँ
अख़लाक़ अहमद आहन
शेर
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
क्या मुसाफ़िर के तईं शिद्दत-ए-बाराँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
वक़्त-ए-नज़्ज़ारा न रो कहते थे ऐ चश्म तुझे
शिद्दत-ए-गिर्या से ले ख़ाक न सूझा, देखा