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शेर
फ़िक्र-ए-फ़र्दा ग़म-ए-इमरोज़ ग़म-ए-मौत-ओ-हयात
आदमी क्या हुआ मजमूआ'-ए-आलाम हुआ
मेह्र निज़ामी मेरठी
शेर
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दोनों चीज़
उस की जफ़ा और अपनी वफ़ा लिख रखेंगे हम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मैं रूह-ए-आलम-ए-इम्काँ में शरह-ए-अज़्मत-ए-यज़्दाँ
अज़ल है मेरी बेदारी अबद ख़्वाब-ए-गिराँ मेरा
शिबली नोमानी
शेर
कभी हो सका तो बताऊँगा तुझे राज़-ए-आलम-ए-ख़ैर-ओ-शर
कि मैं रह चुका हूँ शुरूअ' से गहे ऐज़्द-ओ-गहे अहरमन