aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवाराहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने काउसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
और क्या देखने को बाक़ी हैआप से दिल लगा के देख लिया
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
सितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बसख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
सारी दुनिया के ग़म हमारे हैंऔर सितम ये कि हम तुम्हारे हैं
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत हैऔर तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैरजिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाममुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वोऔर ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम परहँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगीवो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े सेमैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरातिरे सामने आसमाँ और भी हैं
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