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शेर
हफ़्ते में हैं दिन सात मगर सात दिनों में
सिर्फ़ एक ही इतवार है मालूम नहीं क्यूँ
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
शेर
साँवले तन पे ग़ज़ब धज है बसंती शाल की
जी में है कह बैठिए अब जय कनहय्या लाल की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
या तो दीवाना हँसे या तुम जिसे तौफ़ीक़ दो
वर्ना इस दुनिया में रह कर मुस्कुराता कौन है