aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहींइश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल हैदिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन हैजो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
वो अक़्ल-मंद कभी जोश में नहीं आतागले तो लगता है आग़ोश में नहीं आता
इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलानासौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती हैइश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम
अक़्ल ओ दिल अपनी अपनी कहें जब 'ख़ुमार'अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिए
अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार मेंदिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआजो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ
अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन थाइश्क़ ने दिल में रौशनी की है
अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूरचराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है!
अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमीइक ज़रा दीवानगी दरकार है
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राहकिसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ काकि किताब अक़्ल की ताक़ पर जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही
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