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शेर
जब अर्श-ए-मुअल्ला पे मिरे नक़्श-ए-क़दम हैं
क्या चीज़ है फिर औज-ए-सुरय्या मिरे आगे
मोईद रहबर लखनवी
शेर
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा