aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिनतूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानेंमेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिलहम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
जिन से इंसाँ को पहुँचती है हमेशा तकलीफ़उन का दावा है कि वो अस्ल ख़ुदा वाले हैं
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सकायूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहींइश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैंमौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरेहोना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा
अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लीलवो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्तेजान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे
कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ेंचलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल हैदिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम हैअंगूर की शराब का पीना हराम है
उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन हैजो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे
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