aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दियावर्ना हम भी आदमी थे काम के
न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिनउसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद हैहम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूमकि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
दिल धड़कने का सबब याद आयावो तिरी याद थी अब याद आया
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगाआसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोईतू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन कोक्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगेतुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैरजिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आतीमगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों नेलम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
हम को यारों ने याद भी न रखा'जौन' यारों के यार थे हम तो
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक केअब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
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