aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آگ"
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हमअब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता हैआग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ सेइस घर को आग लग गई घर के चराग़ से
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
आग का क्या है पल दो पल में लगती हैबुझते बुझते एक ज़माना लगता है
मैं ने माँगी थी उजाले की फ़क़त एक किरनतुम से ये किस ने कहा आग लगा दी जाए
क्या हो गया इसे कि तुझे देखती नहींजी चाहता है आग लगा दूँ नज़र को मैं
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
चुप-चाप अपनी आग में जलते रहो 'फ़राज़'दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे
कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दोजब आग भेज दी है तो पानी भी भेज दो
इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाएअख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
बाग़बाँ ने आग दी जब आशियाने को मिरेजिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे
जिस्म में आग लगा दूँ उस केऔर फिर ख़ुद ही बुझा दूँ उस को
कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले होक्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में
दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरादेख अब बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगतीन तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसोंसाँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
आँखों के पोछने से लगा आग का पतायूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैंये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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