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शेर
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल ब'अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है
बशीर बद्र
शेर
मुझ दिल में है जो बुत की परस्तिश की आरज़ू
देखी नहीं वो आज तलक बरहमन के बीच
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
हुस्न की देवी बनी बैठी हैं दिल है बुत-कदा
चंद मुस्लिम लड़कियों ने हम को हिन्दू कर दिया
अज़हर बख़्श अज़हर
शेर
छोड़ कर तस्बीह ली ज़ुन्नार उस बुत के लिए
थे तो अहल-ए-दीं पर इस दिल ने बरहमन कर दिया
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
आलम-ए-मस्ती में मेरे मुँह से कुछ निकला जो रात
बोल उठा तेवरी चढ़ा कर वो बुत-ए-मय-ख़्वार चुप