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शेर
कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़्साने लोग
उबैदुल्लाह अलीम
शेर
ये बुत क़िस्मत के पूरे हट के पूरे धुन के पूरे हैं
कोई इन में से हो वा'दे का पूरा हो नहीं सकता
नसीम भरतपूरी
शेर
फ़रिश्ते को मिरे नाले यूँही बदनाम करते हैं
मिरे आमाल लिखती हैं मिरी क़िस्मत की तहरीरें
अर्श मलसियानी
शेर
क़िस्मत के बाज़ार से बस इक चीज़ ही तो ले सकते थे
तुम ने ताज उठाया मैं ने 'ग़ालिब' का दीवान लिया
सय्यद नसीर शाह
शेर
ऐ बाग़बाँ नहीं तिरे गुलशन से कुछ ग़रज़
मुझ से क़सम ले छेड़ूँ अगर बर्ग-ओ-बर कहीं