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शेर
दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें
बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
बसान-ए-नक़्श-ए-क़दम तेरे दर से अहल-ए-वफ़ा
उठाते सर नहीं हरगिज़ तबाह के मारे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स
ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें
ग़म भी रास आया दिल को और ही कुछ सामान करें
मीराजी
शेर
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
सय्यद ज़मीर जाफ़री
शेर
और भी कितने तरीक़े हैं बयान-ए-ग़म के
मुस्कुराती हुई आँखों को तो पुर-नम न करो