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शेर
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मुनव्वर राना
शेर
ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें
ग़म भी रास आया दिल को और ही कुछ सामान करें
मीराजी
शेर
और भी कितने तरीक़े हैं बयान-ए-ग़म के
मुस्कुराती हुई आँखों को तो पुर-नम न करो
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
शेर
बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत
वफ़ा पर इश्क़ की बुनियाद रखना चाहते हैं