aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بھکاری"
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीरआदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं
ये अपनी बेबसी है या कि अपनी बे-हिसी यारोहै अपना हाथ उन के सामने जो ख़ुद भिकारी हैं
कौन सुनता है भिकारी की सदाएँ इस लिएकुछ ज़रीफ़ाना लतीफ़े याद कर लेते हैं हम
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहासब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँइक दिन अपना पीछा कर के देखा जाए
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर हैकब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
बिखरी हुई वो ज़ुल्फ़ इशारों में कह गईमैं भी शरीक हूँ तिरे हाल-ए-तबाह में
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थेकुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरहमैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
आइना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगरआइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहींन मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदनदोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
एक जैसे लग रहे हैं अब सभी चेहरे मुझेहोश की ये इंतिहा है या बहुत नश्शे में हूँ
यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भीमुझ को लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगेउसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
हम-सफ़र हो तो कोई अपना-साचाँद के साथ चलोगे कब तक
जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैंमैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहींऔर क्या जुर्म है पता ही नहीं
हर तरफ़ थी ख़ामोशी और ऐसी ख़ामोशीरात अपने साए से हम भी डर के रोए थे
तंदुरुस्ती से तो बेहतर थी मिरी बीमारीवो कभी पूछ तो लेते थे कि हाल अच्छा है
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