aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بینا"
जो कम-निगाह थे वही अहल-ए-नज़र बनेहम को हमारे दीदा-ए-बीना से क्या मिला
मैं ने देखे हैं दहकते हुए फूलों के जिगरदिल-ए-बीना में है वो नूर तुम्हें क्या मालूम
हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुएइंसाँ अगर हो दीदा-ए-बीना लिए हुए
मैं हूँ कि मुझ को दीदा-ए-बीना का रोग हैऔर लोग हैं कि काम उन्हें अपने काम से
आवाज़ों से जिस्म हुआ नमजैसे इक ना-बीना सा ग़म
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों नेमन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बननामगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनीजिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बानाऔर फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैंख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
मैं इस लिए हुजूम का हिस्सा नहीं बनासूरज कभी नुजूम का हिस्सा नहीं बना
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तकोतमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
उस ने अपना बना के छोड़ दियाक्या असीरी है क्या रिहाई है
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा हैसंग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है
राय पहले से बना ली तू नेदिल में अब हम तिरे घर क्या करते
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जानेकिस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाहतेरे धोके में किसी और के शाने लग जाएँ
सुना ये है बना करते हैं जोड़े आसमानों परतो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है
इक उम्र तक मैं उस की ज़रूरत बना रहाफिर यूँ हुआ कि उस की ज़रूरत बदल गई
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