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शेर
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
शेर
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
शेर
कुछ नहीं मालूम होता दिल की उलझन का सबब
किस को देखा था इलाही बाल सुलझाते हुए
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
न तसल्ली न तशफ़्फ़ी न दिलासा न वफ़ा
उम्र को काटें तिरे चाहने वाले क्यूँ-कर
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
उन्हें हाल-ए-दिल किस तरह लिख के भेजें
न हम उन से वाक़िफ़ न वो हम से वाक़िफ़
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
जब मैं कहता हूँ कि नादिम हो कुछ अपने ज़ुल्म पर
सर झुका कर कहते हैं शर्म-ओ-हया से क्या कहें
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
हम अपनी रूह को क़ासिद बना के भेजेंगे
तिरा गुज़र जो वहाँ नामा-बर नहीं न सही
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
ये भी न पूछा तुम ने 'अंजुम' जीता है या मरता है
वाह-जी-वा आशिक़ से कोई ऐसी ग़फ़लत करता है