aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "درد_مال_غنیمت"
कम मा'रका-ए-ज़ीस्त नहीं जंग-ए-उहद सेअस्बाब-ए-जहाँ माल-ए-ग़नीमत की तरह है
मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायददिल-ए-शिकस्ता मिरी काएनात है शायद
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'ख़ुद अपनी ज़ात की बेचारगी ग़नीमत है
जिसे कहता है ज़माना बुत-ए-बे-महर-ओ-दग़ा-बाज़ जफ़ा-पेशा फ़ुसूँ-साज़ सितम-ख़ाना-बर-अन्दाज़ग़ज़ब जिस का हर इक नाज़ नज़र फ़ित्ना मिज़ा तीर बला ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर ग़म-ओ-रंज का बानी क़लक़-ओ-दर्द
ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्द-आलूद नालों कोये दीवाना बहुत याद आएगा शहरी ग़ज़ालों को
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थींमगर कहीं कहीं सीने में दर्द ज़िंदा था
मकतब-ए-इश्क़ का मोअल्लिम हूँक्यूँ न होए दर्स-ए-यार की तकरार
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई काजो दर्द-मंद भी है और बे-अदब भी नहीं
कितना मान गुमान है देने वाले कोदर्द दिया है और मुदावा रोक लिया
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